बिल्लेसुर बकरिहा–(भाग 4)

पूड़ी-तरकारी, दूध-शकर, मिठाई-खटाई बड़ी तत्परता से सासुजी को परोसा। 


सासुजी को मालूम दिया, मन्नी बडी तपस्या के फल मिले। 

खूब खाया। मन्नी ने पलँग बिछा दिया था, माँ-बेटी लेटीं। 

मन्नी भोजन करके ईश्वर स्मरण करने लगे। आधी रात को जोर से गला झाड़ा, पर सासुजी बेखबर रहीं। 

फिर दरवाजे पर हाथ दे दे मारा, पर उन्होंने करवट भी न ली। मन्नी समझ गये कि सुबह से पहले आँखें न खोलेंगी।

 बस अपनी भावी पत्नी को गले लगाया और भगवान बुद्ध की तरह घर त्यागकर चल दिये। पत्नी गले लगी सोती रही। 

सुबह होते होते मन्नी ने सात कोस का फासला तै किया। जहाँ पहुँचे, वहाँ रिश्तेदारी थी। लोग सध गये। सासुजी ने सबेरे हल्ला मचाया। 

बात खुली। पर चिड़िया उड़ चुकी थी। वे रो पीटकर शाप देती हुई तू मर जा-तेरी चारपाई गंगाजी जाय, घर चली गयीं। 

मन्नी शुभ दिन देखकर चुपचाप विवाह कर पत्नी को साथ लेकर परदेश चले गये।

 पत्नी की दस बारह साल सेवा की। अब धर्म की रक्षा करते हुए, उसे बीस साल की अकेली, उसकी माँ की गोद में जैसे एक कन्या छोड़कर स्वर्ग सिधार गये हैं।


 मन्नी कट्टर सनातनधर्मी थे।

   0
0 Comments